
11 Apr 2020
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समस्त मानव जाति को कोरोना जैसी महामारियों से बचाने का क्या उपाय है?
[श्री फणी द्वारा पूछा हुआ प्रश्न]
श्री स्वामी ने कहा:- हे विद्वानों और भगवान के समर्पित सेवकों! एक राजा ने अपने राज्य में एक नियम पारित किया, जिसका सभी नागरिकों को पालन करना जरूरी था। नियम का पालन न करने वाले नागरिकों के लिए दंड निर्धारित था। कुछ नागरिकों ने नियम का उल्लंघन किया और उन्हें राज्य की अदालत (धर्म-सभा) द्वारा दंडित किया गया। अब मान लीजिये कि ये दंडित उल्लंघनकर्ता राजा की बहुत स्तुति करते हैं और उससे क्षमा-प्रार्थना करते हैं। तो क्या राजा अपनी सर्वोच्च शक्ति का उपयोग करके उनके दंड को रद्द कर देगा? अन्य नागरिकों को, जिन्होंने नियमों का पालन किया, उन्हें दंडित नहीं किया गया, जबकि उन्होंने राजा की कोई स्तुति नहीं की थी। अतः यहाँ मुख्य तत्व राजा के बनाए नियमों का पालन करना यह है। नागरिक राजा की स्तुति करते हैं या नहीं, वह महत्वपूर्ण नहीं है।
यदि आप राजा को भगवान और उसके राज्य को संपूर्ण विश्व, इस रूप में लें, तो आप ऊपर कही कहानी के मर्म को पूरी तरह से वर्तमान स्थिति के संदर्भ में समझ पाएगें। भगवान ने प्राचीन ऋषियों द्वारा मानवता को धर्म-शास्त्र नामक दिव्य संविधान प्रदान किया है। प्रत्येक जीव से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ईश्वर के उस दिव्य संविधान का पालन करे। संविधान कुछ पुण्यकर्म करने की सलाह देता है और पाप कर्मों को प्रतिबंधित करता है। यदि व्यक्ति पुण्यकर्म नहीं करता है, तो वह स्वर्ग जाने जैसे लाभ से ही केवल वंचित रह जाता है। किन्तु यदि कोई पाप कर्म करता है तो उसे निश्चित दंड का सामना करना पड़ता है, जिसमें मृत्यु पश्चात नर्क में भेजा जाना और वहाँ पर दी जाने वाली यातना शामिल है। लेकिन जब किए गए पापकर्म अति-उत्कट होते हैं, तो नरक जैसी सजा यहाँ धरती पर भी दी जाती है (अत्युत्कटैः पापपुण्यैः इहैव फलमश्नुते)। वर्तमान आपदा ईश्वर द्वारा धरती पर जीवों को दिया गया दंड है। अतः यह वास्तव में जीवों द्वारा इसी संसार में किए गए उत्कट पापों का परिणाम है।
धर्म का पालन करना, पुण्य कर्म करना और पाप कर्म न करना यही प्रवृत्ति-धर्म या सांसारिक जीवन का धर्म है। भगवान की भक्ति, जिसमें भगवान की स्तुति शामिल है, वह निवृत्ति-मार्ग या आध्यात्मिक मार्ग है। यदि जीव निवृत्ति में प्रयासरत है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि यदि वह प्रवृत्ति का उल्लंधन करेगा, तो वह दंड से बच जाएगा। अतः भगवान से इसके लिए प्रार्थना करने से यह आपदा नहीं रुकेगी। क्योंकि यह जीवों द्वारा सांसारिक (प्रवृत्ति) जीवन में किए गए पापों की सजा है। प्रवृत्ति और निवृत्ति ये दोनों स्वतन्त्र क्षेत्र है, और निवृत्ति कभी भी प्रवृत्ति में हस्तक्षेप नहीं करती है। भले ही जीव नास्तिक हो, पर यदि वह प्रवृत्ति यानी सांसारिक धर्म (नैतिकता) का निष्ठा से पालन करता है, तो जीव को किसी भी सजा का सामना नहीं करना पडेगा। जो व्यक्ति पापकर्म से बचता है, वह निश्चित रूप से पाप की सज़ा से बच जाता है। ऐसा व्यक्ति इस वर्तमान महामारी में भी, संक्रमण से बच जाएगा।
गीता में तीन मुख्य पाप बताए गए हैं “कामः क्रोधः तथा लोभः...” जो संक्षेप में निम्नलिखित हैं:
ये तीन मुख्य पाप हैं, जिनको करने से सभी लोगों ने सख्ती से बचना चाहिए। भले ही जीव नास्तिक हो या आस्तिक, नैतिक होना, धर्म का पालन करना और सख्ती से पाप करने से बचना, यह भगवान की जीवों से न्यूनतम और अधिकतम अपेक्षा है।
यदि किसी भी देश के लोग इस प्रकार बताए गए तरीके से भगवान से प्रार्थना करते हैं, तो वह देश इस आपदा से बच सकता है। यहाँ तक कि जो लोग भगवान में विश्वास नहीं करते हैं, वे भी निम्नलिखित संकल्प कर सकते हैं और इसका पालन कर सकते हैं। उनकी भी रक्षा होगी। जीव की प्रार्थना या संकल्प इस प्रकार से होनी चाहिए:
“मैं समाज में बड़े पैमाने पर अच्छे कर्म करने का और पाप कर्म न करने के संदेश का प्रचार करूँगा। समाज में नैतिक रूप से जीने के इस संदेश को बार-बार प्रचारित करने से न केवल मैं इसे पूरी तरह आत्मसात करूँगा, बल्कि जनता भी इसे पूरी तरह आत्मसात करेगी। यह प्रचार मेरे साथ-साथ मेरे आस-पास के समाज में सुधार लाएगा। कम से कम, इससे पाप की तीव्रता तो कम होगी। मेरे साथ-साथ सभी जीव भी कम से कम ईमानदारी से अपने पाप की तीव्रता को कम करने का प्रयास करेंगे”।
यह संकल्प विभिन्न नास्तिक देश और विभिन्न देशों के नास्तिक लोग भी कर सकते हैं, क्योंकि इसमें भगवान का कोई उल्लेख नहीं है। हांलाकि नास्तिकों को उस अबाध शक्ति को अवश्य स्वीकार करना चाहिए, जिसके द्वारा मनुष्य के पाप कर्मों का दंड प्रकृति निश्चित रूप से देती है। इस मात्र एक अदृश्य वाइरस ने दुनिया पर विराम लगा रखा है और यहाँ तक कि दुनियां के नेताओं में भय पैदा कर दिया है। प्रलय के समय भगवान के अंतिम कल्कि अवतार, भगवान शिव से प्राप्त विद्युत खड्ग से तक़रीबन सभी जीवों का अंत अकल्पनीय वेग से करेंगे। प्रलयकालीन विनाश इस वाइरस के मुकाबले लाखों गुना तेज़ फैलेगा।
विश्व के हर एक व्यक्ति तक इस संदेश को पहुंचाकर जग को इस महासंकट से बचाना हम सब का कर्त्तव्य है। सभी सोशल मीडिया द्वारा इस मेसेज को फॉरवर्ड करें। इससे न सिर्फ इस महामारी से छुटकारा मिलेगा बल्कि परमात्मा की अपार कृपा भी हमें प्राप्त होगी।
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